Monday, August 1, 2011

प्रतीक पूजक

हम प्रतीक पूजक हैं
केवल प्रतीक पूजक
हम पूजते हैं देश को
प्रतीक के माध्यम से
आयु गवा देते हैं
प्रतीक कि सेवा में
और
लटका लेते हैं देश सेवक के तमगे
सीने पर
पूजते हैं आदर देते हैं
उन तमगो को
क्योकि तमगे भी प्रती ही हैं
और हम हैं केवल प्रतीक पूजक
हम पूजते हैं मूरत को
उस मूरत को
जिसे भगवान कहते है
किंतु
यदि सचमुच का भगवान जाये
तो हम उसके हाथ पाँव तोड़ देंगे
क्योंकि
हम सत्य को भी पूजते हैं
प्रतीक के ही माध्यम से
या तो
सच्चाई प्रतीक बन जाये
या
हमारी आंखों के सामने से टाल जाए
हम पूजते हैं शक्ति को
प्रतीक के माध्यम से
किंतु शक्ति का वरण नही करते
शंख घंटों की ध्वनि से
होता है उत्पन्न हममें उन्माद
और
ओझा करने सा मूड बनाते हैं
इस प्रकार शक्ति के
प्रतीक की पूजा कर
आत्म तुष्टि पाते हैं
हम पूजते हैं समरिधि को
प्रतीक के माध्यम से
भूतकाल का यशोगान करते हैं
क्योंकि
भूतकाल है हमारी सम्रिधि का प्रतीक
और वर्तमान सच्चाई
इसलिए भूत ओद्ते हैं
बिछाते है
और वर्तमान को पाऑन का
झारन बना लेते हैं
इस तरह सम्रिधि के प्रतीक को
पावन बना लेते हैं
हम देते हैं आदर
एक व्यक्ति को उसकी मिरित्यु के बाद
तब वह वह नही रह जाता
उसका प्रतीक बन जाता है
आखिर हम
मात्र प्रतीक पूजक ही तो हैं .
                                     "चरण"

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