Friday, August 19, 2011

भेद भाव

भेद भाव
बहुत समझदार  है यह पूंजीपति वर्ग
पृथ्वी पर ही बना दिया है स्वर्ग और नर्क
खोद दी है गहरी खाई
ताकि एक दुसरे से न मिल पाएं भाई भाई
एक को बना दिया है मजदूर
दुसरे को अफसर
एक को गाली से संबोधन
दुसरे का संबोधन सर
मूल में दोनों एक ही हैं मजदूर
भूल में दोनों अलग अलग हैं
एक दुसरे से बहुत दूर
दोनों ही का एक मकसद है
दोनों ही की मंजिल एक है
रोटी कपडा और मकान
चाहे इधर से पकड़ो
चाहे उधर से पकड़ो
कान है आखिर कान
दोनों ही के आँगन में
एक ही दिन होती है बरसात
एक ही दिन चमकता है
पूर्णमासी का चाँद
एक ही दिन टूटता है
दोनों के धीरज का बांध
हफ्ते भर बाद
पुनः होने लगता है
दोनों ही के आँगन में वास्पीकरण
दोनों ही को लेनी पड़ती है
लाला करोड़ीमल की शरण
फिर भी दोनों के दरमियान
बढ़ता रहता है अंतर
पूंजीपति निरंतर
फूंकते रहते है मंतर
थमा देते हैं कुछ के हाथों में
अतिरिक्त सुविधाओं का गुलदस्ता
कहते हैं चुपचाप सूंघते रहो
हमारे ही कदमो में ऊंघते रहो .
                                     "चरण"

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