Wednesday, August 31, 2011

एक मुट्ठी में सिमट कर रह गया है आसमा

एक मुट्ठी में सिमट कर रह गया है आसमा
अब बेचारे चाँद तारे पैर फैलाएं कहाँ
बिल्डिंगों के मोह में जो फूंक आये झोंपड़े
अब बताओ लौट कर जाएँ तो वे जाएँ कहाँ
बीच में चट्टान है चारों तरफ है खाइयां
रास्ता कोई नहीं अब भाग कर जाएँ कहाँ
कल तलक तो खून का इल्जाम लादे फिर रहे थे
अब बताओ आपने वे वस्त्र धुलवाए कहाँ
हर जलाशय पर बिठा रखे हैं अपने पहरुवे
शर्म लगती है मगर अब डूबने जायें कहाँ .
                                                      "चरण"

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