Tuesday, August 23, 2011

तेरी कातिल अदा


तेरी हर एक अदा दिल में समाती जा रही है
सांझ से था पथ निहारा अब रात बीती जा रही है
जुल्फ में कुछ इस तरह रंगीन रौनक है तेरी
एक छन् उधर जो देख ले बिसरा कभी सकता नहीं
गुलशन के हर इक पुष्प में जो गंध है वह गंध है तेरी
फँस कर कभी ये प्रीत भंवरा फिर निकल सकता नहीं
चाल तेरी दिल को मेरे क़त्ल करती जा रही है
साँझ से था पथ निहारा अब रात बीती जा रही है
प्रात की लाली गवाह है जबकि तूने यह कहा था
आज चाहे कुछ भी हो मै साथ में तेरे रहूँगी
उसी छन् से आज मै कई बार खिड़की झांकता हूँ
सोचता था आज तू दिल की सदा सब कुछ कहेगी
आ भी जा अब तो सभी उम्मीद मिटती जा रही है
साँझ से था पथ निहारा अब रात बीती जा रही है
घर घर हुए रोशन दियों की टिमटिमाती रौशनी से
आकाश ने तारा गणों को संग लेकर गीत गाया
खुश हैं सब भूतल के प्राणी मिलके अपने मीत से
और किसी रमणी के सर में मीत ने गजरा सजाया
कैसे बुझाओं दिल में मेरे आग लगती जा रही है
साँझ से था पथ निहारा अब रात बीती जा रही है
हमदम मेरे क्या आज तक तू मुझसे इतनी दूर है
तू चाहे मुझको भुला दे मैं भुला सकता नहीं
आज तू न आ सकी शायद तू भी मजबूर है
वर्ना मुझे देखे बिना तू रुक कभी सकती नहीं
रात भर आहें मेरी करवट बदलती जा रही हैं
साँझ से था पथ निहारा अब रात बीती जा रही है .
                                                             "चरण"
 .
                                                            

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