Saturday, August 13, 2011

तरस गया हूँ वर्षों से राखी  बंधवाने को ,
अब बहूत दूर रहती है मुझसे मेरी बहना .
बचपन में जो सुबह शाम दिन रात हंसाती थी ,
अब पल पल मुझे रुलाती है वह प्यारी बहना .
भूख नहीं न प्यास मुझे न नींद ही आती है ,
चुपचाप अकेले सह लेंगे अब किससे क्या कहना .
तरस गया हूँ वर्षों से राखी बंधवाने को ,
अब बहूत दूर रहती है मुझसे मेरी बहना .
                                                    "चरण"

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