Friday, August 5, 2011

भारत के ठेकेदारों

भारत के ठेकेदारों देखो भारत डूब रहा है
आन सवारो
शा
कानडी बंगलों में
आवाज़ नही आती  होगी
उन भूखे नंगे कंगालो  की
और यदि आती भी होगी
चुपचाप उसे पी जाते हो
जैसे तुमको कुछ ग्यात नहीं
भारत --------
संभव है
अम्पला अम्बेसडर जैसी कारों में
आवाज़ नहीं आती होगी
उन मासुमो कि
जो भूखे पेट खड़े चिल्लाते
चौराहों पर
और लपते जूथे पत्तों पर चातोन के
किंतु कुत्ते चट कर जाते उनको भी
और आख्ररी आशा भी
फीके आँसू बन
गिर जाती सूखी धरती पर
रोंदे जाने को
भारत ----------
शायद
उथ्हा के चक्कर में
आवाज़ नहीं आती होगी
उन कलियों की सिस्कानो की
जो भारत आन कहाती थी
और
अब तत्पर हैं देने को अपना सब कुछ
केवल रोटी के चंद  टुकड़ों के बदले में
भारत के ----------------.
                                                   "चरण"

No comments:

Post a Comment