Wednesday, June 29, 2011

हमने तक़दीर के मारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने चाँद सितारों पर ग़ज़ल लिखी है
हमने तक़दीर के मारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने फूल और कलियों के कदम चूमे हैं
हमने उजड़े हुए खारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने शहर को आदर्श बनाया अपना
हमने गाँव के बेचारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने सागर के उफनते हुए यौवन को सराहा
हमने तो शांत किनारों पर ग़ज़ल लिखी है

खा रहे नोच कर इंसान की बोटी जो "चरण"
आपने उन गुनाहगारों पर ग़ज़ल लिखी है

जिनकी आदत है हँसीं जिस्म का सौदा करना   
आपने उनके इशारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने उगते हुए सूरज को नमस्कार किया
हमने ढलते हुए सूरज पर ग़ज़ल लिखी है

आपका ध्यान है धनवान की डोली की तरफ
हमने मजबूर कहारों पर ग़ज़ल लिखी है

मेरी गजलों में यह पैनापन क्यों
क्योंकि तलवार की धारों पर ग़ज़ल लिखी है .
                                                       "चरण" 

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