Saturday, August 6, 2011

चौराहों  पर आने लगे हैं लोग
_________________________
भीतर के घाव नोच कर माथे पर उगाने लगे हैं लोग
कितनी मन्हूश शक्ल बनाने लगे हैं लोग
तृष्णा कुछ इस कदर  हावी है जेहन पर
अपने घरों के भेद बताने लगे हैं लोग
सभ्यता के नाम  पर ,मौलिकता के नाम पर
नग्न हो चौराहों पर आने लगे है लोग
उद्देश्यहीन मूर्ख परिंदो  की टोह में
बहेलियोन कि तरह जाल बिछाने लगे हैं लोग
शहंशा कि आँख की पुतली बने हुये
नीचे खड़े हुओ को डराने  लगे हैं लोग .
                                                   "चरण"

1 comment:

  1. Kuch Likhna Chahata Hoon
    Sochta Hoon Kya Likhoon ?
    Soi Umeed Ko Roz Jagana
    Kya Unka Yeh Intezar Likhoon?

    ReplyDelete